Sunday 12 July 2020

जब लंकाधीश रावण पुरोहित बने

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जब लंकाधीश रावण पुरोहित बने ..."

(अद्भुत प्रसंग, भावविभोर करने वाला प्रसंग)

बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी महर्षि कम्बन की 'इरामावतारम्' मे यह कथा है।

रावण केवल शिवभक्त, विद्वान एवं वीर ही नहीं, अति-मानववादी भी था..। उसे भविष्य का पता था..। वह जानता था कि श्रीराम से जीत पाना उसके लिए असंभव है..।

जब श्री राम ने खर-दूषण का सहज ही बध कर दिया तब तुलसी कृत मानस में भी रावण के मन भाव लिखे हैं--

         खर दूसन मो   सम   बलवंता ।
         तिनहि को मरहि बिनु भगवंता।।

रावण के पास जामवंत जी को आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा गया..।
जामवन्त जी दीर्घाकार थे, वे आकार में कुम्भकर्ण से तनिक ही छोटे थे। लंका में प्रहरी भी हाथ जोड़कर मार्ग दिखा रहे थे। इस प्रकार जामवन्त को किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा। स्वयं रावण को उन्हें राजद्वार पर अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवन्त ने मुस्कराते हुए कहा कि मैं अभिनंदन का पात्र नहीं हूँ। मैं वनवासी राम का दूत बनकर आया हूँ। उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहा है।

रावण ने सविनय कहा–   "आप हमारे पितामह के भाई हैं। इस नाते आप हमारे पूज्य हैं। आप कृपया आसन ग्रहण करें। यदि आप मेरा निवेदन स्वीकार कर लेंगे, तभी संभवतः मैं भी आपका संदेश सावधानी से सुन सकूंगा।"

जामवन्त ने कोई आपत्ति नहीं की। उन्होंने आसन ग्रहण किया। रावण ने भी अपना स्थान ग्रहण किया। तदुपरान्त जामवन्त ने पुनः सुनाया कि वनवासी राम ने सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्व-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं। इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होंने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव रावण को आचर्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है।
" मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूँ।"

प्रणाम प्रतिक्रिया, अभिव्यक्ति उपरान्त रावण ने मुस्कान भरे स्वर में पूछ ही लिया

  "क्या राम द्वारा महेश्व-लिंग-विग्रह स्थापना लंका-विजय की कामना से किया जा रहा है ?"

"बिल्कुल ठीक। श्रीराम की महेश्वर के चरणों में पूर्ण भक्ति है. I"

जीवन में प्रथम बार किसी ने रावण को ब्राह्मण माना है और आचार्य बनने योग्य जाना है। क्या रावण इतना अधिक मूर्ख कहलाना चाहेगा कि वह भारतवर्ष के प्रथम प्रशंसित महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई महर्षि वशिष्ठ के यजमान का आमंत्रण और अपने आराध्य की स्थापना हेतु आचार्य पद अस्वीकार कर दे?

रावण ने अपने आपको संभाल कर कहा –" आप पधारें। यजमान उचित अधिकारी है। उसे अपने दूत को संरक्षण देना आता है। राम से कहिएगा कि मैंने उसका आचार्यत्व स्वीकार किया।"

जामवन्त को विदा करने के तत्काल उपरान्त लंकेश ने सेवकों को आवश्यक सामग्री संग्रह करने हेतु आदेश दिया और स्वयं अशोक वाटिका पहुँचे, जो आवश्यक उपकरण यजमान उपलब्ध न कर सके जुटाना आचार्य का परम कर्त्तव्य होता है। रावण जानता है कि वनवासी राम के पास क्या है और क्या होना चाहिए।

अशोक उद्यान पहुँचते ही रावण ने सीता से कहा कि राम लंका विजय की कामना से समुद्रतट पर महेश्वर लिंग विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और रावण को आचार्य वरण किया है।

" .यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है। तुम्हें विदित है कि अर्द्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं। विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना। ध्यान रहे कि तुम वहाँ भी रावण के अधीन ही रहोगी। अनुष्ठान समापन उपरान्त यहाँ आने के लिए विमान पर पुनः बैठ जाना। "

स्वामी का आचार्य अर्थात स्वयं का आचार्य।
 यह जान जानकी जी ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया।
. स्वस्थ कण्ठ से "सौभाग्यवती भव" कहते रावण ने दोनों हाथ उठाकर भरपूर आशीर्वाद दिया।

सीता और अन्य आवश्यक उपकरण सहित रावण आकाश मार्ग से समुद्र तट पर उतरे ।

" आदेश मिलने पर आना" कहकर सीता को उन्होंने  विमान में ही छोड़ा और स्वयं राम के सम्मुख पहुँचे ।

जामवन्त से संदेश पाकर भाई, मित्र और सेना सहित श्रीराम स्वागत सत्कार हेतु पहले से ही तत्पर थे। सम्मुख होते ही वनवासी राम आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया।

" दीर्घायु भव ! लंका विजयी भव ! "

दशग्रीव के आशीर्वचन के शब्द ने सबको चौंका दिया ।

सुग्रीव ही नहीं विभीषण की भी उन्होंने उपेक्षा कर दी। जैसे वे वहाँ हों ही नहीं।

 भूमि शोधन के उपरान्त रावणाचार्य ने कहा

" यजमान ! अर्द्धांगिनी कहाँ है ? उन्हें यथास्थान आसन दें।"

 श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर अत्यन्त विनम्र स्वर से प्रार्थना की कि यदि यजमान असमर्थ हो तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ट विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी तो अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं।

" अवश्य-अवश्य, किन्तु अन्य विकल्प के अभाव में ऐसा संभव है, प्रमुख विकल्प के अभाव में नहीं। यदि तुम अविवाहित, विधुर अथवा परित्यक्त होते तो संभव था। इन सबके अतिरिक्त तुम संन्यासी भी नहीं हो और पत्नीहीन वानप्रस्थ का भी तुमने व्रत नहीं लिया है। इन परिस्थितियों में पत्नीरहित अनुष्ठान तुम कैसे कर सकते हो ?"

" कोई उपाय आचार्य ?"

                         
" आचार्य आवश्यक साधन, उपकरण अनुष्ठान उपरान्त वापस ले जाते हैं। स्वीकार हो तो किसी को भेज दो, सागर सन्निकट पुष्पक विमान में यजमान पत्नी विराजमान हैं।"

श्रीराम ने हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हुए मौन भाव से इस सर्वश्रेष्ठ युक्ति को स्वीकार किया। श्री रामादेश के परिपालन में. विभीषण मंत्रियों सहित पुष्पक विमान तक गए और सीता सहित लौटे।
         
 " अर्द्ध यजमान के पार्श्व में बैठो अर्द्ध यजमान ..."

आचार्य के इस आदेश का वैदेही ने पालन किया।
गणपति पूजन, कलश स्थापना और नवग्रह पूजन उपरान्त आचार्य ने पूछा - लिंग विग्रह ?

यजमान ने निवेदन किया कि उसे लेने गत रात्रि के प्रथम प्रहर से पवनपुत्र कैलाश गए हुए हैं। अभी तक लौटे नहीं हैं। आते ही होंगे।

आचार्य ने आदेश दे दिया - " विलम्ब नहीं किया जा सकता। उत्तम मुहूर्त उपस्थित है। इसलिए अविलम्ब यजमान-पत्नी बालू का लिंग-विग्रह स्वयं बना ले।"

                   
 जनक नंदिनी ने स्वयं के कर-कमलों से समुद्र तट की आर्द्र रेणुकाओं से आचार्य के निर्देशानुसार यथेष्ट लिंग-विग्रह निर्मित किया ।

     यजमान द्वारा रेणुकाओं का आधार पीठ बनाया गया। श्री सीताराम ने वही महेश्वर लिंग-विग्रह स्थापित किया।

 आचार्य ने परिपूर्ण विधि-विधान के साथ अनुष्ठान सम्पन्न कराया।.

अब आती है बारी आचार्य की दक्षिणा की..

     श्रीराम ने पूछा - "आपकी दक्षिणा ?"

पुनः एक बार सभी को चौंकाया। ... आचार्य के शब्दों ने।

" घबराओ नहीं यजमान। स्वर्णपुरी के स्वामी की दक्षिणा सम्पत्ति नहीं हो सकती। आचार्य जानते हैं कि उनका यजमान वर्तमान में वनवासी है ..."

" लेकिन फिर भी राम अपने आचार्य की जो भी माँग हो उसे पूर्ण करने की प्रतिज्ञा करता है।"

"आचार्य जब मृत्यु शैय्या ग्रहण करे तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहे ....." आचार्य ने अपनी दक्षिणा मांगी।
       

"ऐसा ही होगा आचार्य।" यजमान ने वचन दिया और समय आने पर निभाया भी--
       
            “रघुकुल रीति सदा चली आई ।
            प्राण जाई पर वचन न जाई ।”
                     
यह दृश्य वार्ता देख सुनकर उपस्थित समस्त जन समुदाय के नयनाभिराम प्रेमाश्रुजल से भर गए। सभी ने एक साथ एक स्वर से सच्ची श्रद्धा के साथ इस अद्भुत आचार्य को प्रणाम किया ।
               

रावण जैसे भविष्यदृष्टा ने जो दक्षिणा माँगी, उससे बड़ी दक्षिणा क्या हो सकती थी? जो रावण यज्ञ-कार्य पूरा करने हेतु राम की बंदी पत्नी को शत्रु के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है, वह राम से लौट जाने की दक्षिणा कैसे मांग सकता है ?

(रामेश्वरम् देवस्थान में लिखा हुआ है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना श्रीराम ने रावण द्वारा करवाई थी )

🙏 जय श्री राम  🙏
इस प्रसंग को पढ़ने का सादर  आभार

Wednesday 29 August 2018

मासूम पर सौतेली मां का अत्याचार




मासूम पर सौतेली मां का अत्याचार

मासूम पर सौतेली मां का अत्याचार


शुरू करने से पहले दोस्तों आपको बतादे की यदि आपको यह कहानी अच्छी लगती है तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिये। तो चलिए शुरू करते है। 

एक व्यक्ति था उसकी पत्नी का देहांत प्रसव के दौरान ही हो गया था परन्तु किसी तरह बच्चा हो गया था। छोटा बच्चा माँ के बिना कैसे संभाला जाएगा ये एक बहुत ही चिंता का विषय हो गया था। कई मित्रों व सगे सम्बन्धियों के कहने पर उसने पुनः विवाह किया, बच्चे को नई माँ मिल गयी।
नयी माँ बच्चे की सार सम्भार करने लगी बच्चे को भी लगा जैसे की उसकी माँ फिर से मिल गयी। कुछ ही वर्षों में उस युवती को भी एक पुत्र हुआ और उसका ध्यान अपने नए बच्चे पर अधिक रहने लगा। धीरे धीरे उसकी दृष्टि में दोष आने लगा और वो पक्षपात से ग्रसित हो गयी। अब उसे लगने लगा की इस घर का वारिस तो बड़ा लड़का है और संपत्ति पर भी अधिक हक़ इसी लड़के का है।
उसे अपने पुत्र के भविष्य की बहुत चिंता रहने लगी। उसने अपने पति को समझा बुझाके राज़ी किया और बड़े लड़के की पढाई लिखाई सब छुड़वा दी और घर के नौकर को भी हटा दिया तथा सब काम उसी लड़के से कराने लगी। बच्चे के ऊपर बहुत बड़ी विपदा आ पड़ी वो अभी दूसरी कक्षा में ही था और दुनियादारी कुछ नहीं जानता था। उसे यही लगता था माँ ने सही किया होगा घर का सारा काम करते करते उसका पूरा दिन बीत जाता था।


धीरे धीरे माँ ने उसे समझा दिया कि उसका असली कार्य अपने छोटे भाई की सेवा ही है और उसका छोटा भाई ही असली मालिक है। बच्चे ने माँ की आज्ञा मान ली और सदा ही अपने भाई की सेवा सम्भार में तत्पर रहने लगा। अब वो बड़े लड़के को ज़रा ज़रा सी ग़लती होने पर डांटने मारने भी लगी थी ताकि उस पर एक भय बना रहे। वो कोई अच्छे से अच्छे काम भी करता तो उसकी सौतेली माँ उसे बिलकुल बेकार बताती लेकिन फिर भी बालक के मन में माता के लिए प्यार ही उभरता वो उसे सौतेली नहीं मान पाता था।
उस औरत ने घर के पूजा पाठ का जिम्मा भी उसी बच्चे को दे रखा था अतः उस बालक की बुद्धि धीरे धीरे आध्यात्मिक होने लगी। जैसे जैसे वो बड़ा होने लगा उसे सच्चाई समझ में आने लगी लेकिन वो अपना सब दुःख भगवान से ही कह कर संतोष कर लेता था और उसका सारा दुःख समाप्त हो जाता था।

मासूम पर सौतेली मां का अत्याचार
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पिता से वो बहुत प्रीती करता था और जानता था की पिता उसकी स्थति से बहुत दुखित रहते हैं लेकिन वो उनसे हमेशा माँ की बढ़ाई ही करता था।पिता का होना ही उसके लिए बहुत था परन्तु उसके पिता भी एक बिमारी में चल बसे और वो बिलकुल अकेला हो गया।बस भगवान ही उसके रह गए । समय बीतने लगा और दोनों बच्चे बड़े हो गए । अब घर का सारा अधिकार सौतेली माँ के हाथ में था।
योजना के अनुसार बड़े बच्चे की शादी उस औरत ने बहुत ही गरीब घर में व् अनपढ़ औरत से करी तथा अपने पुत्र की बहुत बड़े घर में व पढ़ी लिखी युवती से करी।उसने बड़े लड़के को नौकरों वाले घर में से एक घर दे दिया और उसकी पत्नी को भी बता दिया की उसका असली कार्य मालकिन यानी छोटी बहु की सेवा करना ही है। छोटे लड़के के लिए उसने बहुत बड़ा भवन बनवाया था और स्वयं उसी में उन्ही के साथ निवास करने लगी।
बड़ा लड़का ख़ुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगा और पत्नी के साथ माँ व छोटे भाई के परिवार की सेवा करने लगा ।
छोटे लड़के की स्त्री को उसकी माँ बहुत अखरती थी उसे लगता था की मालकिन उसे होना चाहिए। अब सास बीमार भी रहती थी और साथ में रहने के कारण रात बिरात सेवा उस छोटी बहु को ही करनी पड़ती थी जो उसे बिलकुल नापसंद था। एक दिन पता चला की सास को छूत की बिमारी हो गयी है ये जानकर तो छोटी बहु और दूर दूर रहने लगी। उसकी आँखों में सास खटकने लगी।


उसने अपने पति से कह दिया की इस घर में या तो वो रहेगी या उसकी माँ। छोटे लड़के पर अपनी पत्नी का जादू चढ़ा हुआ था उसने अपनी ही माँ को घर से बाहर निकाल दिया और उसे वहीँ नौकरों के घर में रहने को कह दिया। अब माँ भी वृद्ध हो गयी थी और अचानक हुए इस घटनाक्रम से एकदम बदहवास हो गयी।
उसे अपने जीवनभर की पूँजी व्यर्थ जाती दिखी वो तो अपने इस बेटे के ऊपर पूरी तरह निर्भर थी उसने सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था।उसे लगने लगा की अब उसकी सेवा कौन करेगा, उसने आत्महत्या करने का निर्णय ले लिया और गंगा जी में डूबने चल दी। बड़ा लड़का कहीं बाहर गया था और उसे कुछ पता नहीं था, वो एक घाट से गुज़र रहा था शोर सुना तो देखा कोई नदी में डूब रहा है। उसने भी छलांग लगा दी और जब बचाके लाया तो देखा की ये ये तो उसकी ही सौतेली माँ है।
जब सारी बात पता चली उसे तो वो बहुत दुखित हुआ और अपने पत्नी व माँ के साथ घर त्याग दिया व दूसरे गाँव में रहने लगा। उसने अपने पत्नी के साथ माँ की बहुत सेवा करी और वो ठीक हो गयी। वो लोग अच्छे से जीवन बसर करने लगे।
एक दिन उसकी माँ से बड़ी बहु ने पूछा माँ मुझे कुछ शिक्षा दें तो सास कि आँखों में आँसू भर आये उसने मात्र इतना कहा कि बेटी तुम्हारा पति तो भगवान के समान है शिक्षा तुम्हे उससे ही लेनी चाहिए। मैं तो इतना ही कहूँगी कि किसी को भी पराया नहीं समझना चाहिए और जीवन में किसी के साथ इतना बुरा मत करना कि जब वो तुम्हारे साथ फिर भी भलाई करे तो तुम्हारी आत्मा को गंवारा न हो।

                         🌺आशा है कि आप सभी को इस लीला में अलौकिक आनंद की अनुभूति हुई होगी। 🌺
इसको कम से कम दो लोगों को अवश्य सुनाए या चार ग्रुप मे प्रेषित करें

राधे राधे

मासूम पर सौतेली मां का अत्याचार

Monday 27 August 2018

श्री बाल-कृष्ण की लीला

*🌹 श्री बाल-कृष्ण की लीला 🌹*

श्री बाल-कृष्ण की लीला


शुरू करने से पहले दोस्तों आपको बतादे की यदि आपको यह कहानी अच्छी लगती है तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिये। तो चलिए शुरू करते है। 
एक बार कान्हा जी एक गोपी के घर में चोरी से गए और कमरे के बीचोंबीच एक मटकी में माखन दिखाई दिया।
कान्हा जी ने कहा अरे वाह ! आज तो इस गोपी ने मेरे माखन का पुरा प्रबंध किया है। लेकिन कान्हा जी ने सोचा कि कहीं मुझे पकडने के लिए कोई जाल न बिछाया हो।🌺कान्हा जी ने शंका शील होकर चारों तरफ देखा , कहीं भी कोई नहीं था। कोई आवाज़ भी नहीं थी।तब कान्हा जी बेफिकर होकर मटकी के पास आए और आराम से बैठकर माखन खाने लगे।
तभी दुसरे कमरे से गोपी आई और कान्हा के सामने खडी हो गई।

कान्हा जी ने गोपी को देखकर कहा :- आओ गोपी आओ। माखन खावोगी ?

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🌺अब गोपी का मुख देखने जैसा हो गया , गोपी आंखे निकालकर बोली :- मेरे ही घर में आकर मुझे ही खाने का न्योता दे रहा है ? तब कान्हा जी ने चारो तरफ देखा और फिर बडी मासूमियत से बोले :- ओ हो ! तो यह तेरा घर है। मैं तो माखन की खुश्बू से यहां आ गया। मुझे तो ज्ञात ही न रहा । ऐसा ही लगा कि यह मेरा घर है। एक बात बता गोपी ! तु रोज कथा में जाती है फिर भी तेरा मेरा क्युं करती है ?🌺
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अब गोपी थोडे क्रोध से बोली :- अरे वाह , एक तो मेरे घर में चोरी करता है और मुझे शास्त्रों का ज्ञान दे रहा है ? कान्हा जी ने कहा देख गोपी ! मैं तो अपना घर समझकर माखन की खुश्बू से यहां आ गया था। तो यह तो चोरी कैसे हुई ? अभी तो मैं माखन खाना शुरू ही कर रहा था कि इतने में तु आ गई।🌺गोपी बोली कि अगर तु माखन नहीं खा रहा था तो तेरे हाथ में माखन कैसे लग गया? कान्हा गोपी को धमकाते हुए बोले :- अरे गोपी तेरी मटकी पर चींटी थी। तु तो घर भी साफ नहीं रखती। गोपी बोली कि कहां है चींटी । तो कान्हा जी ने कहा वो तो मैने निकाल दी तो अब कैसे दिखेगी। तब गोपी बोली कि तेरे गालों पर और होठों पर माखन कैसे लग गया ?






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🌺तब कान्हा जी बड़ी मासूमियत से बोले :- वो तो मेरे होठों पर मक्खी बैठी थी तो उसे उडाने में माखन होठों पर लग गया और मेरे बालों की लट गालों पर आ गई तो वहां भी माखन लग गया। गोपी बोली कि देख कान्हा ! मुझे बातो में मत बहका। यह भोलापन किसी और को दिखाना। आज तो तुझे मैने रंगे हाथ चोरी करते हुए पकडा है। आज तो तुझे बांधकर यशोदा मैया से कहुंगी।🌺अब गोपी ने लाला को घर मे खम्भे के साथ डोरी से बाँध दिया है। कन्हैया का श्रीअंग बहुत ही कोमल है। गोपी ने जब डोरी कस कर बाँधी तो लाला की आँख मे आंसू आ गये । गोपी को दया आई। उसने लाला से पूछा- लाला, तुझे कोई तकलीफ होती है क्या?

लाला ने मुख बनाकर और गर्दन हिलाकर बड़ी मासूमियत से कहा- मुझे बहुत दर्द हो रहा है। डोरी जरा ढीली तो करो।🌺तब गोपी ने विचार किया कि लाला का श्रीअंग बहुत ही कोमल है तो लाला को डोरी से कस कर बाँधना ठीक नही। मेरे लाला को दुःख होगा इसलिए गोपी ने डोरी थोड़ी ढीली करी। लेकिन फिर पडोस की सखियों को खबर देने गई कि मैने लाला को बाँधा है।🌺

वैष्णवों ! यहाँ पर हम सभी के लिए एक सिख है। तुम लाला को प्रेम में बाँधो , परंतु किसी के सामने उजागर मत करो ।🌹
🌹तुम खूब भक्ति करो परंतु उसे प्रकाशित मत करो। भक्ति प्रकाशित हो जायेगी तो प्रभु चले जायेंगे। भक्ति का प्रकाश होने से भक्ति बढ़ती नही, भक्ति मे आनंद आता नही।🌹 गोपी बाहर जाने के लिए जरा मुडी ही थी कि तब बालकृष्ण सूक्ष्म शरीर करके डोरी से बाहर निकल गये और गोपी को अंगूठा दिखाकर कहा कि अरे गोपी तुझे बाँधना ही कहा आता है।🌺कान्हा जी को छुटा हुआ देख गोपी अचम्भित होती है , फिर गोपी कहती है - तो मुझे बता, किस तरह से बाँधना चाहिए ?

गोपी को तो लाला के साथ खेल खेलना था। तब लाला गोपी को बाँधते हैं...और ऐसे बांधते है जैसे यह बंधन कभी ना छूटेगा।
जो योगीजन मन से...श्रीकृष्ण का स्पर्श करते हैं तो समाधि लग जाती है .....।यहाँ तो गोपी को प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण का स्पर्श हुआ है। भाव से गोपी प्रेम समाधि में चली जाती है।🌺अब गोपी लाला के मुख दर्शन मे तल्लीन हो जाती है। और गोपी को ब्रह्म ज्ञान हो जाता है। थोड़ी क्षणों के बाद गोपी प्रेम समाधि से बाहर आती है और अपनी बंधी हुई दशा देखकर गोपी कहती है - लाला अब मुझे भी बांधना आ गया है। अब मेरी डोरी छोड़! मुझे छोड़ ! तब कान्हा जी अंगूठा दिखाते हुए मुंह से चिढ़ाते हुए गोपी के पास बैठ जाते हैं।🌺

गोपी बहुत मनाती है बंधन खोलने के लिए फिर गोपी रोने लगी। गोपी को रोते देखकर कान्हा जी भी रोने लगे। गोपी बोली कि बंधी हुई तो मैं हुं तो तु क्युं रोता है लाला? कान्हा जी बोले कि गोपी मुझे तो सिर्फ बांधना (प्रेम-बंधन) आता है, मुझे छोडना तो आता ही नहीं। इसलिए मैं भी तेरे साथ ही रो रहा हुं।🌺
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हम जीव (मानव) ऐसा प्राणी है, जिसको छोड़ना आता है। चाहे जितना प्रगाढ़ सम्बन्ध क्यों न हो परंतु स्वार्थ सिद्ध होने पर उसको एक क्षण में ही छोड़ देते है।🌹परंतु प्रभु एक बार बाँधने के बाद छोड़ते नही, प्रभु को छोडना आता ही नहीं ....!! सिर्फ प्रेम बंधन में बांधना ही आता है 



*इस कथा को कम से कम दो लोगों को अवश्य सुनाए आप को पुण्य अवश्य मिलेगा। या चार ग्रुप मे प्रेषित करें।*



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🌺आशा है कि आप सभी को इस लीला में अलौकिक आनंद की अनुभूति हुई होगी। 🌺
🌹जय श्री राधे-कृष्ण जी 🌹


बृज की माटी



*"बृज की माटी"*

।। जय श्री राधे कृष्णा ।।
बृज की माटी
।। जय श्री राधे कृष्णा ।।


शुरू करने से पहले दोस्तों आपको बतादे की यदि आपको यह कहानी अच्छी लगती है तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिये। तो चलिए शुरू करते है। 


देवताओं ने व्रज में कोई ग्वाला कोई गोपी कोई गाय, कोई मोर तो कोई तोते के रूप में जन्म लिया।कुछ देवता और ऋषि रह गए थे।वे सभी ब्रह्माजी के पास आये और कहने लगे कि ब्रह्मदेव आप ने हमें व्रज में क्यों नही भेजा ? आप कुछ भी करिए किसी भी रूप में भेजिए।ब्रह्मा जी बोले व्रज में जितने लोगों को भेजना संभव था उतने लोगों को भेज दिया है अब व्रज में कोई भी जगह खाली नहीं बची है।

देवताओं ने अनुरोध किया प्रभु आप हमें ग्वाले ही बना दें ब्रह्माजी बोले जितने लोगो को बनाना था उतनों को बना दिया और ग्वाले नहीं बना सकते।देवता बोले प्रभु ग्वाले नहीं बना सकते तो हमे बरसाने को गोपियां ही बना दें ब्रह्माजी बोले अब गोपियों की भी जगह खाली नही है।देवता बोले गोपी नहीं बना सकते, ग्वाला नहीं बना सकते तो आप हमें गायें ही बना दें। ब्रह्माजी बोले गाएं भी खूब बना दी हैं।अकेले नन्द बाबा के पास नौ लाख गाएं हैं।अब और गाएं नहीं बना सकते।

देवता बोले प्रभु चलो मोर ही बना दें।नाच-नाच कर कान्हा को रिझाया करेंगे।ब्रह्माजी बोले मोर भी खूब बना दिए। इतने मोर बना दिए की व्रज में समा नहीं पा रहे।उनके लिए अलग से मोर कुटी बनानी पड़ी।




देवता बोले तो कोई तोता, मैना, चिड़िया, कबूतर, बंदर कुछ भी बना दीजिए। ब्रह्माजी बोले वो भी खूब बना दिए, पुरे पेड़ भरे हुए हैं पक्षियों से।देवता बोले तो कोई पेड़-पौधा,लता-पता ही बना दें।

ब्रह्मा जी बोले- पेड़-पौधे, लता-पता भी मैंने इतने बना दिए की सूर्यदेव मुझसे रुष्ट है कि उनकी किरने भी बड़ी कठिनाई से ब्रिज की धरती को स्पर्श करती हैं।देवता बोले प्रभु कोई तो जगह दें हमें भी व्रज में भेजिए।ब्रह्मा जी बोले-कोई जगह खाली नही है।तब देवताओ ने हाथ जोड़ कर ब्रह्माजी से कहा प्रभु अगर हम कोई जगह अपने लिए ढूंढ़ के ले आएं तो आप हम को व्रज में भेज देंगे।ब्रह्मा जी बोले हाँ तुम अपने लिए कोई जगह ढूंढ़ के ले आओगे तो मैं तुम्हें व्रज में भेज दूंगा। देवताओ ने कहा धुल और रेत कणो कि तो कोई सीमा नहीं हो सकती और कुछ नहीं तो बालकृष्ण लल्ला के चरण पड़ने से ही हमारा कल्याण हो जाएगा हम को व्रज में धूल रेत ही बना दे।ब्रह्मा जी ने उनकी बात मान ली।

इसलिए जब भी व्रज जाये तो धूल और रेत से क्षमा मांग कर अपना पैर धरती पर रखे, क्योंकि व्रज की रेत भी सामान्य नही है, वो ही तो रज देवी - देवता एवं समस्त ऋषि-मुनि हैं।


"ब्रज धूरहि प्राण सों पियारी लगै
ब्रज मंडल माहिं बसाये रहो ।
रसिकों के सुसंग मेंं मस्त रहूं
जग जाल सों नाथ बचाये रहो।।
नित बांकी ये झांकी निहारा करूं
छवि छाक सों नाथ छकाये रहो।
अहो बांके बिहारी यही विनती
मेरे नैनों से नैनां मिलाये रहो ।।"
*💕



।। जय श्री राधे कृष्णा ।।
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बृज की माटी


Thursday 23 August 2018

तुलसी पर शालीग्राम क्यों रखा जाता है ?


तुलसी पर शालीग्राम क्यों रखा जाता है ? 





तुलसी कौन थी ? 

  तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।



एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -

स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर``` आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।

सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता । फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?





उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।

सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी। उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !

*इस कथा को कम से कम दो लोगों को अवश्य सुनाए आप को पुण्य अवश्य मिलेगा। या चार ग्रुप मे प्रेषित करें।*


Wednesday 22 August 2018

मेरे भैया मुझे गिफ्ट नहीं एक वचन चाहिए

मेरे भैया मुझे गिफ्ट नहीं एक वचन चाहिए

Image By Wikipedia
मेरे भैया मुझे गिफ्ट नहीं एक वचन चाहिए


शुरू करने से पहले दोस्तों आपको बतादे की यदि आपको यह कहानी अच्छी लगती है तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिये। तो चलिए शुरू करते है। 

बहन ने भाई की कलाई पर राखी बांधी ....
भाई को उसकी मनपसंद मिठाई खिलाई. बदले मे भाई ने हर बार की तरह जेब मे हाथ डालकर नोटों से भरा एक लिफाफा निकला और पास रखे एक खूबसूरत गिफ्ट को उठाकर बहन को उपहार स्वरूप देने लगा.....
मगर बहन ने कहा - भैया मुझे ये पैसे और गिफ्ट नही चाहिए .........
भाई - तो ...... फिर कया चाहिए मेरी बहना को ......भाई ने बहन के गालो पर हल्के से हाथों को लगाकर बोला..
बहन - बस एक " वचन " दो
भाई - तेरी रक्षा का वो तो मेरी जिम्मेदारी है पगली ....
बहन - नही .... भैया बस इतना वचन दो की जब मम्मी पापा बूढ़े हो जाएं तो उन्हें वृद्धा आश्रम में कभी नहीं छोड़ोगे !

सदा उनकी सेवा करोगे उन्हें प्यार सम्मान दोगे ,कभी उनके कंपकपाते हाथों से कुछ टूट जाए तो उन पर आप कभी नाराज नहीं होंगे इतना कहते-कहते उसके आंखों में आंसू आ जाते हैं !
भाई - उसके आंखो के आंसुओं को पोछते हुए कहता है मैने ये पक्का" वचन " दिया मगर ये मेरी नही हर बेटे की जिम्मेदारी है और हर बेटे का फर्ज है और उस बेटे का सौभाग्य की उसे अपने मम्मी पापा के साथ रहने का सुनहरा अवसर मिले और उनकी सेवा करें ...।
मगर मेरी बहन बदले मे मुझे भी तुझसे एक " वचन " चाहिए ...
बहन - हां भैया मांगो ...इस उपहार के बदले आप कुछ भी मांग लो....
भाई - बस मुझे इतना " वचन " दे ससुराल मे अपने सास ससुर को मम्मी पापा जैसा आदर सम्मान देगी कभी अपने पति से उनकी बुराई नही करेगी ना कभी उन्हें वृद्ध आश्रम भेजने पर मजबूर करेगी......
बहन ने खुशी से भाई को " वचन " दिया ।
आइए हम सब मिलकर एक नई परमपारा की शुरुआत करें भाइयों से मेरा हाथ जोड़कर विनती है कि अपने माता पिता की सेवा मान-सम्मान और हर बहन ससुराल मे सास ससुर को माता पिता मानकर उनकी सेवा व मान सम्मान दे और उन्हें भरपूर प्यार दे तो दुनिया मे कभी किसी वृद्धा आश्रम की कोई जरूरत नही होगी.. मित्रों इसे अधिक से अधिक शेयर करें ताकि नई परम पारा की शुरुआत हो सके ,,,,,,,,, रक्षाबंधन की आप लोगों को ढेर सारी शुभकामनाएं

Monday 20 August 2018

Raksha Bandhan Story In Hindi



...क्या आप मेरी बहन बनेगीएक छल...

छोटी सी सच्चाई


शुरू करने से पहले दोस्तों आपको बतादे की यदि आपको यह कहानी अच्छी लगती है तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिये। तो चलिए शुरू करते है। 
कहानी की शुरूआत होती हैं एक लड़के से, जिसने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली की, क्या कोई लड़की मेरी बहन बनेगी, मेरी कोई बहन नही हैं, अगर मेरी कोई बहन बनना चाहें तो उसका बहुत आभारी रहूंगा,
"बहुत से लोगों ने कमैंट किया, पर उन सब से हट के, फेसबुक पर एक लड़की थी, जिसने कमैंट किया उस पोस्ट पर क्या आप रिश्ता निभा पायेंगे?
उस लड़के का रिपालाई आया जरूर बहन हम पूरें दिल से रिश्ता निभाएंगे, हम आपके लिए जान भी देंगे, बस आप मेरी बहन बन जाइयें..........
कमैंट, रिपलाई चलते रहें, लड़की ने लड़के से घर, कहा रहते हो क्या करते हो अपनी फोटो दिखाओं और बहुत सारी चीजें पूछी लड़के ने भी यही सब किया, कुछ दिन तक यही सब चलता रहा आखिर में लड़की मान गयी, और लड़के से कहा, हाँ मैं आपकी बहन बन जाऊंगी, लड़का बहुत खुश हूआ, कुछ दिनों तक भाई_बहन का प्यार चलता रहा, मानो दो बिछड़े हुये भाई_बहन मिल गयें हो, बहुत से वादें हुये, रक्षाबंधन में मिलने आना आपकी शादी में बुलाना, मैं जरूर आऊंगा, घर के हर काम मैं हाथ बाटऊगा, मानों दो दिल एक हो गयें थे, दोनो ओर खुशी थी..............


Image By Pixabay
फिर एक दिन अचानक लड़के ने मैसेज किया, जिसे पढ़कर लड़की के ऑख में ऑसू आ गयें, उसने लिखा, दीदी क्या आपका कोई बायफ्रेंड हैं अगर हैं तो रिश्ता कहा तक पहुंच गया हैं, क्या क्या कर लिए जरा बताए, लड़की ने रिपलाई किया भाई तुम ऐसा क्यूं बोल रहें, तो लड़के ने कहा, ये सब तो आजकल चलता हैं डरे नही बता दें, लड़की ने फिर रिपलाई किया तुम पागल हो गयें हो क्या जो इस तरह से बात कर रहें, तुम्हें शर्म नही आती??
लड़के ने फिर रिपलाई किया, इसमें शर्म की क्या बात हैं, तुम तो ऐसा बोल रही हो, जैसे कुछ जानती नही हो, ना जाने कितनो से मुंह मारा होगा, ना जाने कितनो के साथ सोई होगी, अगर तुम्हें बुरा ना लगें तो मैं भी सो सकता हूं...............





उस लड़की की माने तो पैर से जमी खिसक गई हो,
वो लड़का जो कुछ दिन पहले अपनी बहन पर जान देने की बात कर रहा था, आज वो अश्लील बातें करने लगा था, उस लड़की ने बस रोते हुयें उस लड़के से एक बात कही,
सुनो_______बदलें हुयें भाई, मैं एक अनाथ लड़की हूं, अभी कुछ दिन पहले ही मुजे नौकरी मिली, थोड़े पैसे जमा कर के मैंने एक मोबाईल लिया, फिर 15 दिन पहले ही फेसबुक जाव्इन किया, मेरा कोई नही हैं ना बाप_ना भाई ना माँ ना कोई रिश्तेदार, तुम्हें बहन चाहिए थी, और मुजे भाई जिंदगी भर कोई रिश्ता नही मिला मुजे, तुमसे बात कर के लगा, मेरा बिछड़ भाई मिल गया, पर मुजे नही पता था, की मैंने दुनिया की सबसे बड़ी गलती की, मेरी एक दोस्त ने कहा भी था, ये फेसबुक है यहाँ किसी पर भरोसा ना करो पर मैंने उसकी एक नही सुनी,
क्यूकि कोई, बहन_भाई के रिश्तें में इतनी गंदी सोच तो नही लाता हैं ना, और मेरा कोई बाँयफ्रेड नही हैं, मुजे जिंदगी ने इतना दुख दिया हैं कि मैंने इन सब चीजों के बारें में कभी सोचा ही नही, बस मैंने यही सोचा था, मेरा भाई मिल गया, मैं तुमसे मिलने आने वाली थी, इस रक्षाबंधन में मैंने राखी भी खरीद ली थी, पर तुमने रिश्तों को गंदी सूरत दे दी, मुजे अनाथ होने पर उतना दुख नही हुआ था, जितना आज तुम्हारी बातों से हुआ हैं..................
मैं टूट चुकी हूं और अब शायद मैं जिंदगी भर कभी किसी का विश्वास नही कर पाऊँ, इसलिए मैं अपनी आईडी बंद कर रही, और हाँ एक बात और, तुमने भले ही मुजे अपनी जरूरत के लिए बहन माना हो पर मैंने तुम्हें अपने दिल से भाई माना था, हो सकें तो अब कभी किसी के साथ इस तरह का झूठा नाटक मत करना, दिल टूटने की आवाज नही होती पर भाई, दर्द बेइंतह होता हैं
आईडी बंद कर दी उस लड़की नें...................
"दोस्तों शायद आप में से बहुत लोगो को ये स्टोरी पसंद नही आयें, पर आजकल यही हो रहा हैं, लोग रिश्तो का नाम लेकर इंसानो का गला घोट रहें हैं, अपने टाइमपास और हवस के लिए लोगो को बस इस्तेमाल करते हैं, और वो भी इतने पवित्र रिश्तों का नाम लेकर, मेरा कहना सबके लिए नही हैं, पर उनके लिए जरूर हैं जिनके दिमाग में गंदी सोच गंदी विकृति चलती हैं, बताइयें ना भला उस लड़की का क्या कसूर था, बस मेरी यही विनती हैं दोस्तों रिश्तों में गंदी सोच मत लाइयें, या सोच गंदी है तो रिश्ता ही ना बनाइयें............ 🙏
"भाई_बहन एक #पवित्र शब्द हैं,
ऐसे ही दौडें ना आयें #कन्हैंया, भरी महफिल में अपनी #बहन की लाज बचाने को....!🙏!

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Raksha Bandhan Story In Hindi


Saturday 18 August 2018

एक माँ की सच्ची दर्द भरी कहानी



एक माँ की सच्ची दर्द भरी कहानी ( घटना )

Image By Diwana Love Guru

शुरू करने से पहले दोस्तों आपको बतादे की यदि आपको यह कहानी अच्छी लगती है तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिये ताकि वह भी इन कहानियो का आनंद ले सके। तो चलिए शुरू करते है। 

मेरी माँ की सिर्फ एक ही आँख थी और इसीलिए मैं उनसे बेहद नफ़रत करता था | वो फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान चलाती थी | उनके साथ होने पर मुझे शर्मिन्दगी महसूस होती थी | एक बार वो मेरे स्कूल आई और मै फिर से बहुत शर्मिंदा हुआ | वो मेरे साथ ऐसा कैसे क...र सकती है ? अगले दिन स्कूल में सबने मेरा बहुत मजाक उड़ाया |

मैं चाहता था मेरी माँ इस दुनिया से गायब हो जाये | मैंने उनसे कहा, 'माँ तुम्हारी दूसरी आँख क्यों नहीं है? तुम्हारी वजह से हर कोई मेरा मजाक उड़ाता है | तुम मर क्यों नहीं जाती ?' माँ ने कुछ नहीं कहा | पर, मैंने उसी पल तय कर लिया कि बड़ा होकर सफल आदमी बनूँगा ताकि मुझे अपनी एक आँख वाली माँ और इस गरीबी से छुटकारा मिल जाये |
एक माँ की सच्ची दर्द भरी कहानी
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उसके बाद मैंने म्हणत से पढाई की | माँ को छोड़कर बड़े शहर आ गया | यूनिविर्सिटी की डिग्री ली | शादी की | अपना घर ख़रीदा | बच्चे हुए | और मै सफल व्यक्ति बन गया | मुझे अपना नया जीवन इसलिए भी पसंद था क्योंकि यहाँ माँ से जुडी कोई भी याद नहीं थी | मेरी खुशियाँ दिन-ब-दिन बड़ी हो रही थी, तभी अचानक मैंने कुछ ऐसा देखा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी | सामने मेरी माँ खड़ी थी, आज भी अपनी एक आँख के साथ | मुझे लगा मेरी कि मेरी पूरी दुनिया फिर से बिखर रही है | मैंने उनसे पूछा, 'आप कौन हो? मै आपको नहीं जानता | यहाँ आने कि हिम्मत कैसे हुई? तुरंत मेरे घर से बाहर निकल जाओ |' और माँ ने जवाब दिया, 'माफ़ करना, लगता है गलत पते पर आ गयी हूँ |' वो चली गयी और मै यह सोचकर खुश हो गया कि उन्होंने मुझे पहचाना नहीं |
एक दिन स्कूल री-यूनियन की चिट्ठी मेरे घर पहुची और मैं अपने पुराने शहर पहुँच गया | पता नहीं मन में क्या आया कि मैं अपने पुराने घर चला गया | वहां माँ जमीन मर मृत पड़ी थी | मेरे आँख से एक बूँद आंसू तक नहीं गिरा | उनके हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा था... वो मेरे नाम उनकी पहली और आखिरी चिट्ठी थी |

उन्होंने लिखा था :

मेरे बेटे...
मुझे लगता है मैंने अपनी जिंदगी जी ली है | मै अब तुम्हारे घर कभी नहीं आउंगी... पर क्या यह आशा करना कि तुम कभी-कभार मुझसे मिलने आ जाओ... गलत है ? मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है | मुझे माफ़ करना कि मेरी एक आँख कि वजह से तुम्हे पूरी जिंदगी शर्मिन्दगी झेलनी पड़ी | जब तुम छोटे थे, तो एक दुर्घटना में तुम्हारी एक आँख चली गयी थी | एक माँ के रूप में मैं यह नहीं देख सकती थी कि तुम एक आँख के साथ बड़े हो, इसीलिए मैंने अपनी एक आँख तुम्हे दे दी | मुझे इस बात का गर्व था कि मेरा बेटा मेरी उस आँख कि मदद से पूरी दुनिया के नए आयाम देख पा रहा है | मेरी तो पूरी दुनिया ही तुमसे है |

चिट्ठी पढ़ कर मेरी दुनिया बिखर गयी | और मैं उसके लिए पहली बार रोया जिसने अपनी जिंदगी मेरे नाम कर दी... मेरी माँ |
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दोस्तो अगर कहानी पसन्द आये तो प्लीज शेयर जरूर करें।
😥😥😥😥😥😥....

एक माँ की सच्ची दर्द भरी कहानी

krishna lila कान्हा की गोपी



🌷दिल से राधे राधे जी😘🙌🌷

" krishna lila कान्हा की गोपी "

krishna lila कान्हा की गोपी
image by Hindi-Web
krishna lila कान्हा की गोपी


एक गोपी आज कृष्ण की याद में बहुत छटपटा रही है। नाम है मयूरी। शायद माता पिता ने मोर जैसा सुंदर रूप देखकर ही उसे ये नाम दिया होगा। 🌷🌹🌷👏
सुबह चार बजे जागी तो देखा जोरों की वर्षा हो रही है। बादल बिल्कुल काले होकर नभ पर बिखरे पड़े हैं। श्याम वर्ण घन देखते ही गोपी की बिरह वेदना बढ़ने लगी। मन ही मन बोली हे श्याम घन!! तुम भी मेरे प्रियतम घनश्याम की तरह हो। जाओ उन्हें मेरा सन्देश दे आओ कि एक गोपी तुम्हारी याद में पल पल तड़प रही है। मेरे इन आंसुओं को अपने जल में मिलाकर श्याम पर बरसा देना। मेरे आंसुओं की तपन से शायद उस छलिया को मेरी पीड़ा का एहसास हो,😢🌹🌷🌷🌷
सोचते सोचते गोपी ने मटकी उठाई और सासु माँ से पनघट जाकर जल भरने की आज्ञा मांगी। मुख पर घूँघट कमर और सर पर मटकी रख कृष्ण की याद में खोई चलती जा रही है पनघट की डगर।🌷🌹🌹🌹
उधर कान्हा को भक्त की पीड़ा का एहसास हो गया था। झट काली कमली कांधे पर डाली और निकल पड़े वंशी बजाते।
कुछ दूर वही गोपी घूँघट डाले चली आ रही है। नटखट ने रास्ता टोक लिया। और बोले भाभी ज़रा पानी पिला दो, बड़ी प्यास लगी है।🌹🌷🌷🌷
गोपी घूँघट में थी, पहचान नही पाई कि जिसकी याद में तड़प रही है वही आया है।
बोली, अरे ग्वाले! नेत्र क्या गिरवी धरा आये हो ? मटकी खाली है। पनघट जा रही हूँ अभी।
मंद मंद मुस्कुराते कान्हा ने घूँघट पलट दिया। बोले, अरि भाभी! नेक अपना चांद सा मुखड़ा तो दिखाती जा!☺☺🌷🌹🌹👏.

krishna lila कान्हा की गोपी
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आँखे मिली। गोपी हतप्रभ! अरे ये यो श्याम हैं। ये मुझे भाभी बुला रहे हैं!😢 कितने नटखट हैं!
बोली, मैं भाभी नही, गोपी हूँ। तुम्हारी सखि हूँ। कान्हा ज़ोर से खिलखिलाकर हँस पड़े।
अरि गोपी! हम तो तुमको दिक करने केो भाभी बोले!🌹🌷🌷👏

गोपी थोड़ा शरमा गई। बोली तो हटो राह से! जल भर लाने दो हमें। कृष्ण ने हंसते हंसते रास्ता दे दिया। गोपी जल भरकर वापस आई। एक मटका सर पर, दूसरा कमर पर। कृष्ण के ख्यालों में खोई सी चल रही है। पास कदम्ब के पेड़ पर घात लगाकर छलिया बैठा है। गोपी के निकट आते ही कंकड़ मारकर सर पर रखी मटकी फोड़ दी। घबराहट में दूसरी मटकी भी हाथ से छूट गई। कदम्ब के पत्तों में छिपे श्याम की शरारती खिलखिलाहट भूमण्डल में गूंजने लगी। सारी प्रकृति खिल उठी। सब ओर सावन दृष्टिगोचर होने लगा।🌷🌹🌹🌹
गोपी ऊपर से रूठती, अंदर से प्रसन्न, आल्हादित! और हो भी क्यों न? सबके मन को हरने वाला सांवरा आज उसपर कृपा कर गया। गोपियों का माखन चोरी, मटकी फोड़ना और उन्हें परेशान करना ये सब गोपियों को बहुत भाता है। इसमें जो आनंद है, जगत में कहीं नही। 🌷🌷🌹🌷

krishna lila कान्हा की गोपी

छछिया भर छाछ के लालच में कमर मटका मटका कर नन्हा कृष्ण जब उन्हें नृत्य दिखाता है तो सब दीवानी हो उठती हैं। कोई गाल चूमती है, कोई हृदय से लगाकर रोती है। कोई आलिंगन में ले गोद में बिठा लेती है, और वचन देने को कहती है कि अगले जन्म में उसका बेटा बनकर जन्मे।। एक नन्हा नटखट और बीस पचीस गोपियाँ👌सबके अलग भाव। किसीको बेटा दिखता है, किसी को प्रियतम और किसीको सखा। परन्तु भगवान का ऐश्वर्यशाली रूप उन्हें नही पता। उनका अबोध, निश्छल मन तो उन्हें बृज का ग्वाल समझकर प्रेम करता है। ऐसा प्रेम जिसकी कोई पराकाष्ठा नही। श्याम को भी कोई परेशानी नही, खूब माखन लिपटवाते हैं मुख पर। कपोल चूम चूम कर लाल कर देती हैं गोपियाँ। जिससे नन्हे का सांवला रूप और भी मोहक लगने लगता है।🌹🌷🌷💝

अहा!! हे गोपियों आपके चरणों मे प्रणाम। जय हो आपके भावों की। जय हो आपके प्रेम।
जय जय श्रीराधेहरी,🙌🌷👏

krishna lila कान्हा की गोपी

जब लंकाधीश रावण पुरोहित बने

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