भगवान के भोग का फल
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अब सेठजी भाग कर संतजी के पास गए, सन्तजी भगवान के भोग लगाकर थाली लिए भोजन करने बैठे ही थे सेठजी दूर से ही बोले महाराजजी रुकिए आप जो नमक लाये थे वो जहरीला पदार्थ था।आप भोजन नहीं करें।
भगवान के भोग का फल
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संतजी बोले भाई हम तो प्रसाद लेंगे ही क्योंकि भोग लगा दिया है और भोग लगा भोजन छोड़ नहीं सकते हाँ अगर भोग नहीं लगता तो भोजन नही करते और शुरू कर दिया भोजन। सेठजी के होश उड़ गए, बैठ गए वहीं पर्। रात पड़ गई सेठजी वहीं सो गए कि कहीं संतजी की तबियत बिगड़ गई तो कम से कम बैद्यजी को दिखा देंगे तो बदनामी से बचेंगे। सोचते सोचते नींद आ गई। सुबल जल्दी ही सन्त उठ गए और नदी में स्नान करके स्वस्थ दशा में आ रहे हैं। सेठजी ने कहा महाराज तबियत तो ठीक है। सन्त बोले भी भगवान की कृपा है, कह कर मन्दिर खोला तो देखते हैं कि भगवान का श्री विग्रह के दो भाग हो गए शरीर कला पड़ गया। अब तो सेठजी सारा मामला समझ गए कि अटल विश्वास से भगवान ने भोजन का जहर भोग के रूप में स्वयं ने ग्रहण कर लिया और भक्त को प्रसाद का ग्रहण कराया।
सेठजी ने आज घर आकर बेटे को घर दुकान सम्भला दी और स्वयं भक्ति करने सन्त शरण चले गए। शिक्षा :- भगवान को निवेदन करके भोग लगा करके ही भोजन करें, भोजन अमृत बन जाता है। आइये आज से ही नियम लें कि भोजन बिना भोग लगाएं नहीं करेंगे।
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